उद्देश्य

 1. प्राचीन भारतीय विद्याओं एवं ज्ञान-विज्ञान का संरक्षण संवर्धन करना।

 2. प्राचीन भारतीय भाषाओं का संरक्षण संवर्धन करना।

 3. आयुर्वेद का उच्च शोध संंस्थान बनाना एवं लोक कल्याणकारी औषधियों का निर्माण करना।

 4. पराशक्ति के द्वारा आन्तरिक ऊर्जा का विकास करना।

 5. मानवता के कल्याण के लिए चिकित्सालयों का निर्माण।

 6. अध्यात्म साधना एवं योग साधना के माध्यम से लोक का कल्याण करना।

 7. मानवता के कल्याण के लिए यथासंभव निरंतर प्रयास करना ।

 8. शिक्षा का प्रचार प्रसार तथा बेरोजगार युवतियों एवं युवको को विभिन्न क्षेत्रो मेंं रोजगार के साधन उपलब्ध कराना।

 9. शक्ति के स्वरुप को  विश्वकल्याणकारी बनाना।

 10. सम्पूर्ण विश्व में शाक्तधर्म का प्रचार प्रसार करना।

 11. सर्वधर्म समभाव के सिद्धांत का पालन करते हुए भ्रष्ट्राचार मुक्त राष्ट्र का निर्माण।

परावेदविज्ञान महासंघ की गतिविधियां विभिन्न विभागों के अंतर्गत संचलित होंगी प्रमुख विभागों की जानकारी एवं कार्य निम्नलिखित हैं ।

पर्यावरण विभाग

भारतीय सनातन संस्कृति के अनुसार जीवन पद्धति में पूजा का शुभारम्भ प्रातः कालीन बेला से प्रत्येक गृह में भगवद्‌ आराधना, अर्चना, धूप, दीप, नैवेद्य के द्वारा पूजन किया जाता है। मिलावटी धूप अगरबत्ती के प्रयोग से वातावरण दूषित होता है।

पर्यावरण आज विश्व की विषम समस्या है। सर्वप्रथम पूजा-सामग्री को पर्यावरण के अनुरूप बनाना, वैज्ञानिकों की सहायता से पूजा सामग्री को उपासना के लायक बनाना है।  इसलिए परावेद विज्ञान के द्वारा पीपल के वृक्ष को प्रत्येक गृह, ग्राम, जनपद, नगर-महानगर के समीप पीपल का वृक्ष लगाकर तथा विश्व के सभी मानवों को इस अभियान में सम्मिलित करके पर्यावरण की समस्या का समाधान किया जा सकता है।

वनस्पति विभाग

वनस्पतियाँ हमारे जीवन की अमूल्य निधि हैं। संस्था का लक्ष्य, इस विभाग के माध्यम से लुप्त हो रही वनस्पतियों का संरक्षण करना तथा इनका संवर्धन करना, किसानों  के जीवन स्तर को ऊपर उठाने  के लिए आयुर्वेद में वर्णित औषधियों की खेती करना, औषधियों का निर्माण करके सम्पूर्ण विश्व को रोगरहित बनाना है।

प्रकाशन विभाग

1. परावेद विज्ञान चमत्कारी शोध पत्रिका का सम्पादन करना तथा सम्पादक मण्डल का निर्माण करना।

इस पत्रिका का लक्ष्य विश्व में धार्मिक, आध्यत्मिक वातावरण का निर्माण करना, ऋषि परम्परा को प्रकाशित करना, देश-विदेश के अच्छे संतो के अनुभव को लोक कल्याण के लिये जन-जन तक पहुँचाना, उन सभी साधकों के जीवन में हुए चमत्कारों को लोक में प्रकाशित करना जिससे जीव प्रेरित होकर सत्य के पथ पर चलकर जीवन को मंगलमय बना सकें।

समाज में उपासना क॑ नाम पर हो रही ठगी और तन्त्र-मन्त्र के दुष्प्रभाव को रोकना है।

2. दुर्लभ विद्याओं का प्रकाशन करना ।

3. धार्मिक एवं प्रेरणादायी पुस्तकों का प्रकाशन करना ।

4. राष्ट्र के निर्माण में सहयोग करने वाले, सत्य और निष्ठा से कार्य करने वाले सरकारी तथा गैर सरकारी लोगों का चयन कर संस्था के द्वारा पुरस्कृत करना ।

संस्कार विश्वविद्यालय

समूचे राष्ट्र में सुख शांति एवं समृद्धि के लिए राम राज्य की स्थापना करनी होगी। इसके लिए संस्कारवान बालकों का निर्माण करना होगा। आज सम्पूर्ण विश्व में अनैतिकता, अनाचार, पापाचार का बोलबाला है। मानव मूल्यों का निरंतर ह्वास हो रहा है जिसके कारण समाज दिशाहीन हो रहा है। भौतिकवाद की अँधी दौड़ में आज का युवा बहुत ही तीव्र गति से दौड़ रहा है। जिसके कारण वह अशांत तथा दिशाहीन होता जा रहा है। इस भौतिकवाद को सीमित करना होगा और पुनः वेद कालीन युग का निर्माण करना होगा। सभी छोटे-छोटे बालकों को जाति धर्म से ऊपर उठकर संस्कारवान बनाना होगा। इसलिए परावेद महासंघ संस्कार विश्वविद्यालय की स्थापना का संकल्प करता है। इस विश्वविद्यालय का लक्ष्य 5 वर्ष से लेकर 25 वर्ष  के बालकों को संस्कारवान बनाना है।

यज्ञ विभाग

हमारी सनातन पद्धति में यज्ञ का बहुत ही महत्त्व है। इसलिए हमारी संस्था यज्ञ के आयोजनों द्वारा लोक एवं परलोक को सुखमय बनाने का कार्य कर रही है। दैहिक, दैविक, भौतिक त्रितापों से जीव का मंगल करना इस संस्था का उद्देश्य है।

यज्ञ के माध्यम से प्रकृति को प्रसन्‍न करना, धरा पर समय से वर्षा कराना तथा पर्यावरण को शुद्ध करना इस संस्था का मुख्य उद्देश्य है।

वानप्रस्थ आश्रम

आज सम्पूर्ण विश्व में संयुक्त परिवार की जीवन यात्रा विखण्डित हो गई है। छोटे-छोटे समूहों में परिवार विभाजित होता चला जा रहा है। बच्चे वयस्क होकर धन कमाने की लालसा में अपनें माता-पिता को छोड़कर अपनी निजी जिंदगी के भोग विलास में लिप्त होते जा रहे है।

जिसके कारण माता-पिता का जीवन कष्टप्रद होता जा रहा है। इसलिए हमारी संस्था ने वानप्रस्थ आश्रम का निर्माण करके भारतीय ऋषि परम्परा के अनुसार उत्तम जीवन शैली का निर्माण करने का संकल्प किया है।

योग विभाग

योग क्या है ?

गीता में योग की परिभाषा योगःकर्मसु कौशलम् (2-50) की गयी है । दूसरी परिभाषा समत्वं योग उच्यते(2-48) है । कर्म की कुशलता और समता को इन परिभाषाओं में योग बताया गया है । पातंजलि योग दर्शन में योगश्चिय वृत्ति निरोधः (1-1) चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है । इन परिभाषाओं पर विचार करने से योग कोई ऐसी रहस्यमय या अतिवादी वस्तु नही रह जाती कि जिसका उपयोग सवर्साधारण द्वारा न हो सके । दो वस्तुओं के मिलने को योग कहते हैं । पृथकता वियोग है और सम्मिलन योग है । आत्मा का सम्बन्ध परमात्मा से जोड़ना योग होता है ।

ज्योतिष विभाग

ज्‍योतिष या ज्यौतिष विषय वेदों जितना ही प्राचीन है। प्राचीन काल में ग्रह, नक्षत्र और अन्‍य खगोलीय पिण्‍डों का अध्‍ययन करने के विषय को ही ज्‍योतिष कहा गया था। … (१) तन्त्र या सिद्धान्त – गणित द्वारा ग्रहों की गतियों और नक्षत्रों का ज्ञान प्राप्त करना तथा उन्हें निश्चित करना।

अन्य विभाग:

वसुधा कल्याण कोष

इस कोष के माध्यम से विश्व में किसी भी प्रकार की आपदा आने पर यह संस्था लोगों को राहत पहुँचाने का यथाशक्ति कार्य करेगी।

परिणयसूत्र विभाग

गरीब कन्याओं के विवाह के लिए संस्था यथाशक्ति सहयोग प्रदान करेगी।

गौशाला निर्माण

परावेद विज्ञान महासंघ का उद्देश्य गौशालाओं का निर्माण करना, भारतीय देशी गायों का संरक्षण करना, गौ विषयक उच्च शोध संस्थान का निर्माण करना ।