प्रतिदिन प्रातः स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह*

*प्रतिदिन प्रातः स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र। संग्रह* * प्रात: कर-दर्शनम्*कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥ *पृथ्वी क्षमा प्रार्थना*समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥*त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण*ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥ * स्नान मन्त्र *गंगे च यमुने चैव गोदावरी …

भक्ति के बारे में कई ग्रन्थ अपने विचार रखते है। और शिवपुराण में भी भक्ति के बारे में बताया है।

  भक्ति के बारे में कई ग्रन्थ अपने विचार रखते है। और शिवपुराण में भी भक्ति के बारे में बताया है। शिवपुराणोक्त नवधा भक्ति- शिव उवाच-श्रवणं कीर्तनं चैव स्मरणं सेवनं तथा।दास्यं तथार्चनं देवि वन्दनं ममसर्वदा।।सख्यमात्मार्पणंचेति नवाङ्गानि विदुर्बुधाः।उपाङ्गानिशिवे तस्या बहूनि कथितानि वै।। शिव जी सती से कहते हैं–हे देवि श्रवण, कीर्तन स्मरण सेवन दास्य अर्चन सदा …

अज्ञान क्या है?

अज्ञान क्या है?- माया,अविद्या, अज्ञान अध्यास,विवर्त आदि ब्दो का प्रयोग वेदान्त में पर्यायवाची के रूप में हुआ है।वेदांत वेदांतदर्शन में ब्रह्म को ही जगत की उत्पत्ति ,स्थिति और प्रलय का कारण माना गया है। जन्म के अतिरिक्त इस संसार में कुछ भी नहीं है “सर्व खल्विदं ब्रह्म,नेह नानास्ति किञ्चन ” अर्थात इस जगत में ब्रह्म …

श्रीरामचरितमानस बालकाण्डश्लोक :

श्रीरामचरितमानस बालकाण्डश्लोक : *वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥ *भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥ वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌।यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥ ॥सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ। वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥ उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌।सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥ यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरायत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः।यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतांवन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद्रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।स्वान्तःसुखाय तुलसी …

श्रीरामचरितमानस बालकाण्डश्लोक :

श्रीरामचरितमानस बालकाण्डश्लोक : *वर्णानामर्थसंघानां रसानां छन्दसामपि। मंगलानां च कर्त्तारौ वन्दे वाणीविनायकौ॥1॥ *भवानीशंकरौ वन्दे श्रद्धाविश्वासरूपिणौ। याभ्यां विना न पश्यन्ति सिद्धाः स्वान्तःस्थमीश्वरम्‌॥2॥ वन्दे बोधमयं नित्यं गुरुं शंकररूपिणम्‌। यमाश्रितो हि वक्रोऽपि चन्द्रः सर्वत्र वन्द्यते॥3॥॥ सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणौ। वन्दे विशुद्धविज्ञानौ कवीश्वरकपीश्वरौ॥4॥ उद्भवस्थितिसंहारकारिणीं क्लेशहारिणीम्‌। सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्‌॥5॥ यन्मायावशवर्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुरायत्सत्त्वादमृषैव भाति सकलं रज्जौ यथाहेर्भ्रमः। यत्पादप्लवमेकमेव हि भवाम्भोधेस्तितीर्षावतांवन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमीशं हरिम्‌॥6॥ नानापुराणनिगमागमसम्मतं …

भक्ति के बारे में कई ग्रन्थ अपने विचार रखते है। और शिवपुराण में भी भक्ति के बारे में बताया है।शिवपुराणोक्त नवधा भक्ति

भक्ति के बारे में कई ग्रन्थ अपने विचार रखते है। और शिवपुराण में भी भक्ति के बारे में बताया है।शिवपुराणोक्त नवधा भक्ति- शिव उवाच- श्रवणं कीर्तनं चैव स्मरणं सेवनं तथा।दास्यं तथार्चनं देवि वन्दनं ममसर्वदा।।सख्यमात्मार्पणंचेति नवाङ्गानि विदुर्बुधाः।उपाङ्गानिशिवे तस्या बहूनि कथितानि वै।। शिव जी सती से कहते हैं-हे देवि श्रवण, कीर्तन स्मरण सेवन दास्य अर्चन सदा मेरा …

उपनिषद-Upanishads

ईश–केन–कठ–प्रश्न–मुण्ड–माण्डूक्य–तित्तिरः । ऐतरेयं च छान्दोग्यं बृहदारण्यकं तथा ।। १– ईशावास्योपनिषद्२– केनोपनिषद्३– कठोपनिषद्४– प्रश्नोपनिषद्५– मुण्डकोपनिषद्६– माण्डूक्योपनिषद्७– तैत्तिरीयोपनिषद्८– ऐतरेयोपनिषद्९– छान्दोग्योपनिषद्१०– बृहदारण्यकोपनिषद्

वसंत पंचमी

वसंत पंचमी सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा और वीणावादिनी सहित अनेक नामों से संबोधित जाता है। ये सभी प्रकार के ब्रह्म विद्या-बुद्धि एवं वाक् प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-। ये शुक्लवर्ण, शुक्लाम्बरा, वीणा-पुस्तक-धारिणी तथा …

सरस्वती स्त्रोत प्रार्थना-

सरस्वती स्त्रोत प्रार्थना- रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतंरवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, हरि-चन्दन-कुंकुम-पंक-युतम् !मुनि-वृन्द-गजेन्द्र-समान-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। शशि-शुद्ध-सुधा-हिम-धाम-युतं, शरदम्बर-बिम्ब-समान-करम्।बहु-रत्न-मनोहर-कान्ति-युतं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। कनकाब्ज-विभूषित-भूति-पवं, भव-भाव-विभावित-भिन्न-पदम्।प्रभु-चित्त-समाहित-साधु-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। भव-सागर-मज्जन-भीति-नुतं, प्रति-पादित-सन्तति-कारमिदम्।विमलादिक-शुद्ध-विशुद्ध-पदं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। मति-हीन-जनाश्रय-पारमिदं, सकलागम-भाषित-भिन्न-पदम्।परि-पूरित-विशवमनेक-भवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। परिपूर्ण-मनोरथ-धाम-निधिं, परमार्थ-विचार-विवेक-विधिम्।सुर-योषित-सेवित-पाद-तलं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। सुर-मौलि-मणि-द्युति-शुभ्र-करं, विषयादि-महा-भय-वर्ण-हरम्।निज-कान्ति-विलोमित-चन्द्र-शिवं, तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।। गुणनैक-कुल-स्थिति-भीति-पदं, गुण-गौरव-गर्वित-सत्य-पदम्।कमलोदर-कोमल-पाद-तलं,तव नौमि सरस्वति! पाद-युगम्।।सरस्वती स्त्रोत प्रार्थना- रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं रवि-रुद्र-पितामह-विष्णु-नुतं, …

सनातन धर्म में सूर्य की पूजा की परंपरा काफी पुरानी है

सनातन धर्म में सूर्य की पूजा की परंपरा काफी पुरानी है। वैसे तो रोजाना ही ज्यादातर लोग स्नान करने के बाद सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं लेकिन रविवार सूर्य देवता का दिन होता है। इसका अर्थ यह है कि रविवार को विशेषरुप से सूर्यदेव की ही पूजा की जाती है। नारद पुराण में लिखा …