संस्थापक

संस्थापक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष: प्रो. शीतला प्रसाद शुक्ला

विभागाध्यक्ष, पुराणेतिहास विभाग,

श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्विद्यालय,

नई दिल्ली -110016

प्रो.शीतला प्रसाद शुक्ला

 

संस्थापक के विचार

पारब्रह्मपरमेश्वर के द्वारा रचित यह सृष्टि गंगा की प्रवहमान धारा के सदृश पल-पल,कल-कल, छल-छल, निर्मल, निष्कलंक प्रेम की अविरल धारा बहती रहे।

समूचे विश्व को भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के उच्चतम मानदण्ड से समस्त जड़-चेतन जीव के आत्मकल्याण के लिए परावेदविज्ञान महासंघ निरन्तर प्रयास करता चला आ रहा है।

विश्व में अनेक धर्म, जाति, वर्ण, सम्प्रदाय, अनेक प्रकार की भाषाएं, रंग, रूप, सभ्यताये हैं, इस विश्व में अनेक देश हैं, जिनके अलग-अलग संविधान हैं। लेकिन मानव द्वारा रचित संविधानों से भी ऊपर एक संविधान है, और वह है ईश्वरीय संविधान। इस संविधान के द्वारा विश्व का प्रत्येक जड़-चेतन जीव अपनी-अपनी ऊति कर्मवासना के द्वारा चलाया जा रहा है। इसी को तुलसीदास ने मानस में उल्लेख किया है-

कर्मप्रधान विश्व करि राखा,जो जस करै सो तस फल चाखा ।।

ईश्वर का संविधान सर्वोत्तम संविधान है जो स्वचलित है अतः इसे  चलाने की आवश्यकता नहीं है। विश्व में जितनी विद्याएँ तथा शिक्षाएँ हैं, ये सभी अपराज्ञान के अन्तर्गत हैं, जीव इन सभी विद्याओं के द्वारा भौतिक सुख प्राप्त करता है लेकिन वह आत्मज्ञान से वंचित रह जाता है।

जीव का कल्याण अपरा विद्या से नहीं अपितु परा विद्या में प्रवेश करने पर होगा। अर्थात्‌ जब तक जीव सांसारिक ज्ञान के द्वारा जीवन यापन करेगा, तब तक उसका कल्याण नहीं होगा। उसे ईश्वरीय ज्ञान के द्वारा अपने जीवन को बदलना होगा, तभी वह इस आवागमन के चक्र से मुक्ति पा सकता है।

जीव का कल्याण सांसारिक पदार्थों से नहीं हो सकता है। जीव के कल्याण के लिए परावेद विज्ञान महासंघ सनातन ऋषि परम्परा के अनुसरण पर बल देता है और परावेद विद्या में पारंगत साधकों के मार्गनिर्देशन में ही जीव का कल्याण सम्भव है। परावेद विज्ञान विश्व कुटुम्ब की भावना से कार्य कर रहा है। समूचा विश्व एक परिवार है, साधना एवं तपस्या के माध्यम से जीव अपना आत्म-कल्याण कर सकता है।

इस संस्था का उद्देश्य है कि सभी धर्मों के संत एवं साधक विश्व के कल्याण के लिए अपनी साधना एवं तपस्या द्वारा सृष्टि को सुन्दर एवं निर्मल बनाने का प्रयास करें। इस शस्य-श्यामला, प्रकृति सुन्दरी, वसुन्धरा को हम सब मिलकर सजाने सँवारने का कार्य करें।

आज समूचा विश्व प्रकृति का दोहन करने में लिप्त है जिससे सृष्टि का स्वरूप विकृत होता चला जा रहा है। हम सभी मनुष्य मिलकर यज्ञ एवं साधना उपासना के माध्यम से सृष्टि की रक्षा कर सकते है। यह देश दुर्लभ विद्याओं का देश है। जिन विद्याओं के द्वारा जीवों का कल्याण किया जाता रहा है, आज वे विद्याएं लुप्त होती जा रही हैं। हम सभी लोगों को मिलकर उन विद्याओं का संरक्षण एवं संवर्धन करना है ,जिससे समूचे मानव समाज का कल्याण किया जा सकता है।

हमारी संस्था परावेद विज्ञान महासंघ, विश्वरूपी रंगमंच से समस्त सन्त, महात्मा, तपस्वी, साधकों का आवाहन करती है कि हम सभी मिलकर इस सृष्टिरूपी बगिया को पुष्पित पल्‍लवित कर मकरंद की सुगंध को दिग-दिगन्त में प्रसारित करें। इस संस्था का मूल उद्देश्य शाक्त धर्म को समूचे विश्व में प्रचारित एवं प्रसारित करना है। मातृशक्ति सृष्टि का मूलाधार है, यह शक्ति चराचर ब्रह्मांड मे व्याप्त है।

पराम्बा जगदम्बा के कृपा से यह विश्व संचालित हो रहा है। हम सभी जीव ब्रह्मांड-अधिश्वरी की शरण में आन्नद की प्राप्ति कर सकते है।