चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा

चतुर्थी के दिन माँ कूष्मांडा कीआराधना करने से मनुष्य के समस्तरोग-शोक दूर होकर आयु-सुख-यश में वृद्धि होती है।
 
॥कूष्मांडा देवी का ध्यान ॥
नवरात्र-पूजन के चौथे दिन साधक का मन ‘अनाहत’ चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचल मन से कूष्माण्डा देवी के स्वरूप ध्यान निम्नलिखित मंत्र से करना चाहिए-
 
“सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे।।”
 
अर्थात् रक्तरंजित और सुरा से परिपूर्ण घड़े को करकमलों में धारण करने वाली ‘कूष्माण्डा’ भगवती मेरा कल्याण करे।
 
॥कूष्मांडा देवी का स्तोत्र ॥
“दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वं हि दुःखशोकनिवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥”
॥कूष्मांडा देवी का कवच ॥
“हंसरै मे शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,
पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥”
 
‘कूष्माण्डा’ का पर्यावरण वैज्ञानिक स्वरूप
पर्यावरण विज्ञान की दृष्टि से ‘कूष्माण्डा’ आध्यात्मिक‚ आधिदैविक‚ और आधि भौतिक प्रकृति विज्ञान की संचालिका शक्ति है।
 
ऋग्वेद के वाग्देवी सूक्त में आदिशक्ति के द्वारा समस्त लोगों की उत्पत्ति का वर्णन आया है-
“अहमेव वात इव प्र वाभ्यारममाणा भुवनानि विश्वा”
(ऋ.10.125.8)
 
वहाँ रात्रि देवी द्वारा अपनी तेजस्विता से समस्त ब्रह्माण्ड के अन्धकार को दूर करने का भी उल्लेख आया है-
 
‘ज्योतिषा बाधते तमः’ (ऋ.10.127.2)
 
सूर्यमण्डल में निवास करने वाली इस देवी के भास्वर स्वरूप से दसों दिशाएं प्रकाशमान रहती हैं। प्रकृति परमेश्वरी का ‘कूष्माण्डा’ स्वरूप प्राणियों में ऊर्जा और तेजस्विता का संचार करता है। इनके तेज और प्रकाश से ही पृथिवीलोक की दसों दिशाएँ प्रकाशित हो रही हैं ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्ही देवी की छाया है।
यह देवी अष्टभुजा देवी है इनके सात हाथों में कमण्डलु‚धनुष‚बाण‚कमल‚सुरायुक्त कलश‚चक्र तथा गदा सुशोभित हैं तो आठवें हाथ में जप की माला है।सिंहवाहना कूष्माण्डा देवी को कूष्माण्ड अर्थात कुम्हडे की बलि प्रिय है।उत्तराखण्ड के अनेक प्रान्तो में नवरात्र के अवसर पर प्राकृतिक आपदाओं से रक्षा हेतु कूष्माण्डा देवी को कुम्हड़े की बलि दी जाती है। संस्कृत शब्द ‘कूष्माण्ड’ को अलगअलग प्रांतों में कुम्हड़ा, पेठा या कुमाउंनी शब्द ‘भुज’ के नाम से जाना जाता है। त्रिविध आपदाओं और प्रकृतिप्रकोप का संचालनतंत्र देवी के इसी चौथे रूप में समाया हुआ है।मां कूष्माण्डा की उपासना मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख, समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली है।अतः अपनी लौकिक, पारलौकिक उन्नति चाहने वालों को इनकी उपासना में सदैव तत्पर रहना चाहिए। पर्यावरण की अधिष्ठात्री प्रकृति परमेश्वरीका ‘कूष्माण्डा’ स्वरूप हमारे विश्वपर्यावरण की रक्षा करे-