देवी का सातवां रूप :‘कालरात्रि’

सप्तमं कालरात्रीति’ 

देवी का सातवां रूप :‘कालरात्रि’

 
नवरात्र की सातवीं तिथि पर देवी के सातवें रूप ‘कालरात्रि’ के स्वरूप की उपासना की जाती है। महाकाल की आदि शक्ति को भी ‘काली’ या ‘महाकाली’ के नाम से जाना जाता है।‘कालरात्रि’ का वर्ण अंधकार की भाँति काला है, केश बिखरे हुए हैं, कंठ में विद्युत की चमक वाली माला है, माँ कालरात्रि के तीन नेत्र ब्रह्माण्ड की तरह विशाल व गोल हैं, जिनमें से बिजली की भाँति किरणें निकलती रहती हैं, इनकी नासिका से श्वास तथा निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं।
‘कालरात्रि’ की आकृति विकराल है। जिह्वा बाहर निकाले हुए श्मशानवासिनी इस देवी के एक हाथ में खड्ग और दूसरे में नरमुण्ड रहता है। तीसरे हाथ में अभयदान की मुद्रा रहती है तो चौथा हाथ वरदान देने के भाव से ऊपर उठा रहता है। ‘शाक्त प्रमोद’ में विध्वंसकारी प्रकृति का प्रतिनिधित्व करने वाली ‘महाकाली’ का रूप ऐसा ही भयंकर दर्शाया गया है।
 
यह कालरात्रि देवी ही महामाया भी हैं और भगवान विष्णु की योगनिद्रा हैं। इन्होंने ही सृष्टि को एक दूसरे से जोड़ रखा है।‘कालिका पुराण’ के अनुसार इन्द्र आदि देवताओं द्वारा महामाया जगदम्बा की स्तुति करने पर शुम्भ तथा निशुम्भ नामक दैत्यों का वध करने के लिए जिस देवी का जन्म हुआ वह घोर काजल के समान कृष्णवर्ण की हो गई इसलिए वह ‘कालिका’ कहलाई तथा हिमालय में वास करने लगी।
 
उत्तराखण्ड स्थित द्वाराहाट हिमालय के द्रोणगिरि शक्तिपीठ में महामाया जगदम्बा दो रूपों में प्रतिष्ठित हैं
 
‘कालिका’ देवी के रूप में और सिहवाहिनी ‘दुर्गा’ के रूप में।
 
स्कंदपुराण के ‘मानस खंड’ के अन्तर्गत ‘द्रोणाद्रिमाहात्म्य’ के अनुसार –
 
“तथैव कालिकां देवीं द्रोणाद्रिकुक्षिसंस्थिताम्।
सम्पूज्य प्राप्यते विप्रा मनोऽभिलषितं फलम्।।”
– मानसखंड, 36.19.
 
मधु कैटभ नामक महापराक्रमी असुर से जीवन की रक्षा हेतु भगवान विष्णु को निद्रा से जगाने के लिए ब्रह्मा जी ने निम्नलिखित मंत्र से मां की स्तुति की थी-
 
“कालरात्रिर्ममहारात्रिर्मोहरात्रिश्र्च दारूणा।
त्वं श्रीस्त्वमीश्र्वरी त्वं ह्रीस्त्वं बुद्धिर्बोधलक्षणा॥”
 
नवरात्र के सातवें दिन निम्न मंत्र से ‘कालरात्रि’ देवी का ध्यान करना चाहिए-
 
“एकवेणी जपाकर्णपूरा
नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी
तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोह-
लताकण्टकभूषणा।
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा
कालरात्रिर्भयंकरी।।”